8TH SEMESTER ! भाग- 121( Bloody End of 3rd Semester- 1))
Chapter-33: Bloody End of 3rd Semester
"अरुण..."ये एक ऐसा शक्स था जो मेरे दिल के बेहद ही करीब था या फिर कहे कि सबसे करीब था... ये एक ऐसा शक्स था जो जानता था कि मैं आक्चुयल मे क्या हूँ, मैं आक्च्युयली मे क्या पसंद है और क्या ना-पसंद है ... इसलिए मै अरुण के साथ ये होने नहीं दे सकता था.
किसी के बारे मे मेरी सोच क्या हो सकती है... ये पता करने के सिर्फ़ तीन तरीके है, पहला ये कि मैं खुद आपको बताऊ, जो की कभी हो नही सकता.... दूसरा ये कि आप मेरे 1400 ग्राम के ब्रेन की स्कॅनिंग करके सब मालूम कर ले और ये भी 99.99999999 % इंपॉसिबल ही है.... लेकिन तीसरा तरीका बहुत आसान है और वो तीसरा तरीका मेरा खास दोस्त अरुण है...
इस समय अरुण मुझे इस उम्मीद मे ताक रहा था कि मैं उसे इस प्राब्लम से निकलने का कोई आइडिया या फिर कोई सुझाव दूँगा... वो जब से रूम के अंदर घुसा था तब से लेकर अब तक हर 10 सेकेंड्स मे मुझसे पुछ्ता कि मुझे कोई आइडिया आया या नही और हर बार की तरह इस बार भी जब उसने 10 सेकेंड्स के पहले ही टोक कर मुझसे पुछा तो मैं भड़क उठा....
"अबे ये तेरे हथियार मे भरा जमाल घोटा है क्या, जो कहीं भी ,किसी भी वक़्त हथियार निकाल कर माल बाहर कर दिया... बेटा प्लान सोचना पड़ता है और सोचने के लिए थोड़ा टाइम चाहिए होता है... बहुत जवानी मचल रही थी ना, अब भुगत "
"जल्दी सोच भाई ...तब तक मैं मूत कर आता हूँ..."
"हां तू जा मूत कर आ...यही सही रहेगा और सुन..."
"बोल.."
"मेरे बदले भी मूत कर आना... वरना मुझे डर है कि, मै मूतने गया तो मूत के साथ कही आईडिया ना बह जाए... अब जल्दी जा और जल्दी आ "
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अरुण की मदद तो मुझे करनी ही थी फिर चाहे कुछ भी हो जाए, फिर चाहे मै इधर से उधर हो जाऊ... मेरा अस्तित्व इधर से उधर हो जाए... ये दुनिया इधर से उधर हो जाए... अरुण मेरे लिए,मेरे चड्डी, बनियान की तरह था... ,जिसके बगैर मैं जी तो सकता था लेकिन उसके बिना हर वक़्त एक बेचैनी सी रहती.... जिसके बिना कॉलेज मे मैं एक दिन भी नही गुजर सकता था... वो मेरे इयरफोन की तरह था, ,जिसके बिना मैं गाना तो सुन सकता था, लेकिन उसके बिना मजा नहीं आता और सबसे बड़ी बात.... ये की वो मेरा रूम पार्ट्नर था और उससे बड़ी बात ये कि वो मेरे दिल के बहुत करीब था ,इतना करीब की कभी-कभी मुझे ऐसा लगने लगता जैसे कि हम दनो एक-दूसरे के गे-पार्ट्नर है.... इस दौरान जब कुछ टूटा-फूटा सा आइडिया मेरे दिमाग़ मे आया तो मैं खिड़की के पास गया और बाहर देखने लगा कि गौतम और उसके दोस्त हॉस्टल की तरफ आ रहे है या नही...?? .और जैसा मैने सोचा था वैसा ही हुआ ,गौतम ,बहुत सारे लौन्डो के साथ हॉस्टल की तरफ आते हुए मुझे दिखाई दिया...
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"सौरभ... तू जाकर हॉस्टल के सब लौन्डो को जमा कर और मेरे रूम मे आने के लिए बोल..."
सौरभ के जाने के बाद अपने पैंट की चैन बंद करते हुए अरुण रूम मे घुसा...
"कुछ सोचा बे या अभी तक मरवा रहा है..."अंदर घुसते हुए अरुण ने पुछा....
"तू अभिच यहाँ से कल्टी मार, गौतम बहुत सारे लड़को को लेकर हॉस्टल की तरफ आ रहा है... एक काम कर हॉस्टल कि छत से दूसरी साइड जंगल के तरफ भाग जा... बहुत घना जंगल है.. उधर तुझे ढूंढ़ने कोई नहीं आएगा..."
"शेर ,कुत्तो के झुंड से डरकर भागता नही, बल्कि उनका मुक़ाबला करता है ,उनकी माँ -बहन एक कर देता है और फिर उनकी माँ -बहन को चुसाता है..."
"पर अभी सच ये है कि तू ना ही कोई शेर है और गौतम के दोस्त ना ही कुत्ते के झुंड, वो फुल पेलने की प्लानिंग मे आ रहे है... इसलिए जितना बोला उतना कर और कितना भी शोर-शराबा हो वापस मत आना... ताकि पुलिस केस मे साफ झलके के सिटी वाले खुद ही लड़ाई करने गये थे और अरुण के ना होते हुए भी उन्होंने हॉस्टलर्स पर हमला किया......समझा....??"
"तू बोल रहा है तो ठीक ही बोल रहा होगा भाई... इसलिए डरकर छिप जाता हूँ ,वरना आज ही उन सालो को पेलता..."
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मैने अरुण को छत की ओर जाने का कहा , क्यूंकी जैसा मैने सोचा था उसके अनुसार गौतम...सबसे पहले हॉस्टल के अंदर एंट्री मारेगा और उसके सामने हॉस्टल का जो भी लौंडा दिखेगा उसे पकड़ कर सीधे अरुण का रूम नंबर पुछेगा.... मैं नही चाहता था कि गौतम ,अरुण को देखे इसीलिए मैने अरुण को छिपने के लिए कहा और एक कॉपी खोलकर पढ़ने का नाटक ऐसे करने लगा... जैसे की मुझे कुछ पता ही ना हो....
और जैसा की मेरा अंदाजा था हॉस्टल के अंदर घुसकर गौतम ने एक लड़के का कॉलर पकड़ कर उससे सीधे अरुण का रूम नंबर पुछा और फिर दरवाजे पर लात मारकर वो रूम के अंदर आया.....
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"तो तू भी उसी कुत्ते के साथ रहता है..."अंदर आते ही गौतम ने गालियाँ बाकी"वो हरामी कहाँ छिपा बैठा है,उसे बोल की बाहर आए, अभी साले के अंदर से इश्क़ का जुनून निकालता हूँ...."
"ओ...हेलो...किसकी बात कर रहा है और गालियाँ किसे बक रहा है बे ..ज़रा औकात से बात कर और चल निकाल... पढ़ाई कर रहा मै...."किताब बंद करते हुए मैने कहा...
"सुन बे अरमान... तू ,आज शांत रहना... वरना आज तुझे भी तेरे उस दोस्त के साथ मारूँगा... इतने दिन से सह रहा हूँ, शांत हूँ इसका मतलब ये नही कि मैं तुम लोगो से डरता हूँ... तुम्हारी औकात ही क्या बे मेरे सामने... जो मुझे गुंडई दिखाओ... इसलिए आज ज्यादा हेरोगिरी नहीं.. सवाल मेरी बहन का है.. साले हरामी "
"हरामी होगा तू ,तेरा बाप, तेरा दादा, तेरा परदादा और तेरे परदादा का परदादा.....और ये बता कि यहाँ क्यों मरवाने आया है..."मैने भी अपने तेवर दिखाते हुए कहा...
"तू फालतू मे दिमाग़ कि दही मत कर और बता अरुण कहा है ....."
"देखो... ऐसा है बेटा लोग की तुम लोग अब निकल लो... वरना मै भी अरमान ही हूँ.. हॉस्टल बंद करवा के एक -एक को ठीक ढंग से पेलुँगा... Get Out "
"पहले बता कि वो है कहाँ...वरना अब तुझे भी ठोकेंगे..."गौतम के एक जिगरी दोस्त ने आगे आते हुए कहा...
"अरुण तो एस.पी. अंकल के यहाँ है...अभी कुछ देर पहले उसका फोन आया था..."
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एस.पी. का नामे सुनते ही उन लोगो के तेवर काफ़ी हद तक कम हो गया... वो सभी,जो गौतम के साथ आए थे, एक -दूसरे का मुँह ताकने लगे...और मैं यही तो चाहता था कि एस.पी. का सपोर्ट अरुण पर है, ये सोचकर वो ईस वक़्त वहाँ से चले जाए और बात को भूल जाए.....
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"अबे मै सच मे कह रहा हूँ... अरुण SP अंकल के यहाँ है... मुझ पर यकीन नही तो तुम लोग एक-एक रूम चेक करो"
"ठीक है... Guys... एक -एक रूम चेक करो और जहाँ भी वो हवसी दिखे...मार दो साले को, जान से.... कमीना मेरी बहन से इश्क़ लड़ाता है..."
गौतम के ऐसा कहने पर उसके चमचे हॉस्टल के हर एक रूम को चेक करने लगे, पर मै बेफिकर था,क्यूंकि अरुण को तो मैने छत से कूदकर जंगल मे भाग जाने को कहा था... ढूंढ़ने दो सालो को, अरुण क्या...अरुण का एक बाल तक नहीं ढूंढ पाएंगे साले.... इसलिए शुरू के कुछ कमरो को जब गौतम के चमचो ने चेक किया तो उन्हे अरुण नही मिला. लेकिन जब वो फ्लोर के आख़िरी छोर की तरफ बढ़े तो मै भी उनके पीछे -पीछे हो लिया.. ताकि किसी हॉस्टलर्स पर वो लोग दबाव ना बना सके..... .क्यूंकी यदि किसी हॉस्टलर ने अरुण को छत कि तरफ भागते हुए देखा हो और उसने गौतम के सामने पोक दिया तो फिर बवाल हो जाएगा.... जिस हिसाब से गौतम क्रोध कि अग्नि मे तप रहा था... वो पक्का जंगल मे भी अरुण को मारने घुसेगा और तो और वो ये भी जान जायेगा की एस.पी. से ना तो अरुण का कोई रीलेशन है और ना ही मेरा ...यदि ऐसा होता तो फिर वो ये भी जान जाते कि एस.पी. का नाम लेकर मैं उन्हे आज तक सिर्फ़ चूतिया ही बनाते आया हूँ और फिर बेफिक्र होकर लड़ाई - मार पीट करते.... साला,इतना सब कुछ सिर्फ एक लड़की के लिए...
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"ओये, इसे अपने बाप का रंडी खाना समझ रखा है क्या, जो हर रूम को खोल कर देख रहे हो..बाप का राज है क्या....मैने बोला ना कि अरुण यहाँ नही है... समझ नहीं आता तुम लोग को.." मैं जोर से कॉरिडोर मे चिल्लाया और मेरे चिल्लाते ही लड़के रूम से बाहर आने लगे...
"तू हरामी चुप रहा..."पीछे आकर एकदम झटके से मेरा कॉलर पकड़ कर गौतम ने मुझे पीछे धकेला और बोला
"तू क्या सोचता है कि मुझे मालूम नही तेरे कांड... फर्स्ट ईयर के दो लौन्डो को तूने ही मारा था ये मुझे पता है और बहुत जल्द तेरा भी नंबर आने वाला है.... बेटा ऐसी मार मारूँगा ना तुझे कि तेरी सारी हेकड़ी निकल जाएगी..... एक हिजड़े की ज़िंदगी जीने पर मज़बूर कर दूँगा तुझे मैं... तेरा बाप भी तुझे देखकर हिजड़ा कहेगा और तालिया बजाएगा. तू बस देखता जा, तेरी मैं वो हालत करने वाला हूँ कि तुझ पर कोई पेशाब भी करने से पहले सौ बार सोचेगा...चल भाग साले, रंडी कि पैदाइश .."मुझे ज़ोर से धक्का देते हुए गौतम ने कहा...
जिसके बाद मैं सीधे फर्श पर उल्टा गिरा... उल्टा गिरने के कारण मेरे सर का पिछला भाग ज़ोर से किसी नीचे टकराया...दर्द तो बहुत हुआ लेकिन मेरे अंदर उफन रहे ज्वालामुखी ने उस दर्द को लगभग शुन्य कर दिया... मैने बाकी लड़को को इशारा करके हॉकी स्टिक लाने को बोला और साथ मे एक लड़के को मेरे बिस्तर के नीचे रखा लोहे का रोड लाने के लिए भी वोला और खड़ा होकर गौतम को आवाज़ दी...
"इधर देख बे... रंडी की औलाद...पहले जाकर अपनी माँ से पुछ्ना कि कितनो का लेकर तुझे पैदा किया है, फिर मुझसे बात करना"
मै गौतम कि तरफ बढ़ा और गौतम मेरी तरफ... इतने मे एक लड़के ने मुझे आवाज़ देकर लोहे का रॉड मेरी तरफ फेका जिसे दौड़ते हुए कूदकर मैने पकड़ा और मज़बूती से ग्रिप बनाते हुए बिना कुछ सोचे-समझे अपनी पूरी ताक़त से वो रॉड सामने से आ रहे गौतम के सर मे दे मारा....
"साला, हरामी... मेरे सामने गुंडई करता है... पेलो रे इन सब माँ दे लाड़लो को... एक -एक के खून से हॉस्टल को सींच दो... "